हिन्दू धर्म में नवरात्रि का अपना महत्व हैं एवं साधना की दृष्टि से इसका महत्व कई अधिक बढ़ जाता हैं.. प्रति वर्ष ग्रहों की विशेष स्थिति को देखते हुए हमारे ऋषि मुनिओं द्वारा वर्ष में चार नवरात्रि मनाये जाने की परम्परा दी , इनमें से दो गुप्त नवरात्रि तंत्र साधकों के लिए व दो नवरात्रि सार्वजानिक रूप से सभी के लिए होती हैं। इन्हीं में चैत्र नवरात्रि का आरंभ हिन्दू पंचाग के प्रथम माह चैत्र से होता हैं एवं हिन्दुओं का नववर्ष भी इसी दिन मनाया जाता हैं...
नवरात्रि 'शक्ति' की उपासना हैं। शक्ति क्या हैं..? शक्ति गति हैं, बल हैं, ऊर्जा हैं। समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त जो ऊर्जा हैं वहीं 'शक्ति' हैं, मनुष्य शरीर में जो ऊर्जा गतिमान है वह 'शक्ति' है। सृष्टि का संचालन भी इसी से हैं और विनाश का कारण भी यहीं शक्ति हैं। सूक्ष्म से लेकर वृहद तक शक्ति सर्वत्रव्याप्त हैं। वर्ष में ग्रहों की विशेष स्थिति के कारण यह ऊर्जा अपने शिखर पर होती हैं अतः इसी समय को सदुपयोग हेतु ऊर्जा व शक्ति के विभिन्न रूपों कों नवरात्रि के स्वरूप में उपासना की जाती हैं एवं मूर्त रूप में शक्ति की उपासना देवीय रूप में की जाती हैं। भगवान शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप ही जगत और सृष्टि का प्रतिरूप हैं। इसी आदिशक्ति की उपसना का पर्व नवरात्रि हैं। इन नौ दिनों में शक्ति और ऊर्जा स्वयं को भिन्न भिन्न रूपों में प्रकट करती हैं --
माँ शैलपुत्री :- मां आदि शक्ति का पहला ईश्वरीय स्वरूप शैलपुत्री है, शैल अर्थात शिखर, पौराणिक कथाओं के अनुरूप शैल पुत्री कैलाश पर्वत की पुत्री थी किंतु योगिक दृष्टि से देखें तो चेतना का सर्वोत्तम स्थान है। प्रथम दिवस पर शक्ति की उपासना कर अपनी ऊर्जा को शिखर पर ले जाने हेतु साधना की जाती है।
माँ ब्रह्मचारिणी:- नवरात्रि के दूसरे दिवस मां आदिशक्ति की उस उर्जा के रूप में उपासना की जाती है जो असीम है अनंत में विद्यमान है गतिमान है इसलिए इस ऊर्जा को ब्रह्मचारिणी मां का नाम दिया गया, ये वह ऊर्जा है जो गतिमान होते हुए भी विद्यमान है यही ब्रम्हचर्य का अर्थ हैं।
माँ चंद्रघंटा:- नवरात्रि के तीसरे दिवस मां आदिशक्ति को चंद्रघंटा के रूप में पूजा जाता है। मां चंद्रघंटा चंद्रमा का प्रतीक है चंद्रमा मन का इसलिए अपने भीतर विद्यमान ऊर्जा को सर्वोच्च शिखर पर ले जाने हेतु मन का शांत और स्थिर होना नितांत आवश्यक है। मां चंद्रघंटा की उपासना मन को शांत, निर्मल व स्थिर करने हेतु की जाती है।
माँ कुष्मांडा:- कुष्मांडा का अर्थ है 'गोलाकार'अर्थात वह प्राणशक्ति जो समस्त सृष्टि में गोलकार वृत्त की भांति विद्यमान है। मनुष्य शरीर के भीतर भी यही गोलाकार ऊर्जा विद्वान है परंतु विभिन्न संस्कारों व कर्म बंधनों के कारण बिखरी हुई है, अतः स्वयं के भीतर बिखरी हुई ऊर्जा को गोलाकार व्रत में लाने हेतु नवरात्रि के चतुर्थ दिवस मां आदिशक्ति की कुष्मांडा के रूप में उपासना की जाती है।
माँ स्कंदमाता:- नवरात्रि में ऊर्जा का पांचवा रूप स्कंदमाता के रूप में जाना जाता है, स्कंद का अर्थ होता है ज्ञान को व्यवहार में लाते हुए कर्म करना तथा स्कंदमाता ऊर्जा का वह रूप है जिसकी उपासना से ज्ञान को व्यवहारिकता में लाकर पवित्र कर्म का आधार बनाया जा सकता है। इस तरह है यह इच्छा शक्ति, ज्ञानशक्ति और क्रिया शक्ति का समागम है। शिव तत्व का मिलन जब त्रिशक्ति के साथ होता है तो स्कंद 'कार्तिकेय' का जन्म होता है।
माँ कात्यायनी:- मां कात्यायनी ऊर्जा का वह रूप है जो सब प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं, मां का दिव्य कात्यानी रूप अव्यक्त के सूक्ष्म जगत में नकारात्मक का विनाश कर धर्म की स्थापना करता हैं।
माँ कालरात्रि:- मां आदिशक्ति का सातवां स्वरूप कालरात्रि है, काल अर्थात संकट जिसमें हर तरह के संकट को समाप्त कर देने की शक्ति हो वह माता कालरात्रि है। ब्रह्मांड में व्याप्त आसुरी शक्तियों का काल मां कालरात्रि ही है।
माँ महागौरी:- शक्ति का आठवां स्वरूप महागौरी है गौरी का अर्थ है प्रकाशमय , ऊर्जा का वह रूप है जहां ऊर्जा विभिन्न स्तरों से गुजर प्रकाशमय हो जाती है इसी प्रकार मनुष्य को भी अपने भीतर विद्यमान ऊर्जा को मां की उपासना करते हुए प्रकाशित करना होता है।
मां सिद्धिदात्री:- मां का यह रूप ज्ञान व बोध का प्रतीक है, ऊर्जा का वह रूप है जिसे जन्मों की साधना से पाया जा सकता है। यह परम सिद्ध अवस्था है इसलिए इसे सिद्धिदात्री कहा गया।
इस प्रकार अपने भीतर की ऊर्जा को इन नौ दिवसों में अधोगति से ऊधर्व गति की ओर ले जाने का यह सर्वश्रेष्ठ समय है।
आप और आपके परिवार को नव वर्ष व नवरात्रि की अनेकों अनेक शुभकामनायें। इस नवरात्रि में सभी आंतरिक व बाहरी आसुरी शक्तियों का विनाश हो एवं प्रकाश और सकारात्मक ऊर्जा का संचार सर्वत्र हो यही माँ आदिशक्ति से प्रार्थना है🙏🙏
योग माता श्रद्धा गिरि
(महामंडलेश्वर जूना अखाड़ा )
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