योग का बढ़ा ही साधारण अर्थ हैं - 'जुड़ाव'। पतंजलि सुत्र में भी -" युजत्य अनेन इति योग :।। " अर्थात.. योग जुड़ने की प्रक्रिया है। यदि हम इस संसार व सृष्टि का ध्यानपूर्वक अवलोकन करें तो सूक्ष्म से लेकर वृहद तक सब 'योगमय' हैं। योग की अनुपस्थिति में न तो यहाँ संसार व सृष्टि संभव है और न ही इनका क्रियाकल्प। सृष्टि का मूल आधार 'शिव और शक्ति' व 'पुरुष और प्रकृति' का मिलन 'योग' है। यदि संसार को देखें तो संसार में प्रतेक जीव की एक दूसरे पर निर्भरता 'योग' है। उदाहरण - वृक्ष से प्राप्त ऑक्सीजन मनुष्य जीवन का आधार है तो वही मनुष्य द्वारा निकासित कार्बन वृक्षों का आधार 'योग' ही है। मनुष्य, पशु, पक्षी,नदी, पहाड़ का एक दूसरे से जुड़ाव 'योग' ही है। ये मनुष्य शरीर भी स्वयं 'पंचभूतों' और 'इन्द्रियों' के योग का परिणाम है। इस सृष्टि की संचालन प्रक्रिया में मौजूद 'सत' , 'रज' , 'तम' गुणों का समनव्यय 'योग' ही है। इन्हें ही आज की आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में 'इलेक्ट्रान' , ...
Mahamandaleshwar, Juna Akhara